Tuesday, May 23

जगन्नाथ मंदिर ,पुरी, ओडिशा ||Jagannath Temple, Puri, Odisa

जगन्नाथ मंदिर पुरी ओडिशा में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध अवतार भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इस मंदिर की नींव 12वीं से 13वीं शताब्दी में रखी गई थी। यह मंदिर हिंदू धर्म में विश्व का सबसे बड़ा चारधाम तीर्थ में से एक माना जाता है। हिंदू धर्म धर्म के हिसाब से चार धाम बदरीनाथ, द्वारिका ,रामेश्वरम और पूरी है। मान्यता है कि भगवान विष्णु जब चारों धाम पर बसे तो सबसे पहले बद्रीनाथ गए और वहां स्नान किया, इसके बाद वह गुजरात के द्वारका गए और वहां कपड़े बदले, द्वारका के बाद उड़ीसा के पुरी में उन्होंने भोजन किया और अंत में तमिलनाडु के रामेश्वरम में विश्राम किया ।




पूरी में भगवान श्री जगन्नाथ का मंदिर है। मंदिर के सामने चौक होता है जिसे बदरी केदार की तरह माना जाता है। पूरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ,उनके भाई बालभद्र और बहन सुभद्रा को संगमन के तीन मूर्तियों में दर्शाया जाता है।  यहां  सभी लकड़ी के मूर्तियां हैं, लकड़ी के मूर्तियों वाला यह देश का अनोखा मंदिर है।  जगन्नाथ मंदिर की ऐसी तमाम विशेषताएं हैं साथ ही मंदिर से जुड़े ऐसे कई  रहस्य और कहानियां है जो सदियों से एक पहेली जैसा है जिसे सुलझाना किसी वैज्ञानिक या शास्त्र विशेषज्ञ की भी बात नहीं है जो कि आज भी एक रहस्य  बनी हुई है मंदिर में समय समय पर अन्य उत्सव भी मनाए जाते हैं जैसे रथयात्रा, छत्र यात्रा आदि।



 सिंहद्वार का रहस्य

जगन्नाथ पुरी मंदिर समंदर के किनारे पर है मंदिर के मुख्य द्वार या जिसे सिंहद्वार भी कहा जाता है, कहा जाता है कि जब सिंहद्वार में कदम बाहर की ओर रहती है तब लहरों की आवाज साफ-साफ सुनाई देती है जैसे ही सिंहद्वार के अंदर कदम जाता है लहरों की आवाज गुमनाम सी हो जाती है इसी तरह द्वार से निकलते वक्त वापसी में जैसे ही पहला कदम बाहर निकालते हैं समंदर की लहरों की आवाज फिर से चहकने लगती है।

यह भी कहा जाता है सिंहद्वार में कदम रखने से पहले श्मशान घाट में आसपास जलाई जाने वाली चिताओं की गंध भी आती है लेकिन जैसे ही कदम द्वार के अंदर जाता है यह गंध भी खत्म हो जाती है यह भी सिंहद्वार के एक रहस्य में अब तक बनी हुई है।


मंदिर के झंडे का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर करीब करीब चार लाख (400000) वर्ग फीट एरिया में स्थित है। इसकी ऊंचाई 214 फिट है।  आमतौर पर दिन में किसी वक्त  किसी भी इमारत या चीज या इंसान की परछाई जमीन पर दिखाई देती है लेकिन जगन्नाथ मंदिर की परछाई कभी भी किसी ने नहीं देखी। इसके अलावा मंदिर के शिखर पर जो झंडा लगा है उसे लेकर भी बड़ा रहस्य है इस झंडे को हर रोज बदलने का नियम है मान्यता यह है कि अगर किसी दिन झंडे को नहीं बदला गया तो शायद मंदिर अगले 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा  इसके अलावा यह झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में उड़ता रहता है। 

मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है। कहा जाता है कि पूरी के किसी भी कोने से अगर इस सुदर्शन चक्र को देखा जाए तो उसका मुंह आपकी तरफ ही नजर आता है।

गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी

 मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया । इसके ऊपर से अभिमान नहीं उड़ाया जा सकता मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबद ऊपर पक्ष बैठ जाते हैं या आस-पास उड़ते हुए नजर आते हैं।


दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर

भगवान जगन्नाथ जी का प्रसाद बनाने के लिए ₹500 रसोईया तथा 300 सहयोगियों के साथ बनते हैं। लाखों  भक्त यहां प्रसाद पाने आते हैं। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों ना बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर  पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए ही रहता है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी व्यर्थ नहीं जाती है कहा जाता है कि जैसे जैसे समय होता है प्रसाद अपने आप खत्म होते जाता है और प्रसाद कभी व्यर्थ नहीं गया है। मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पड़ी पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश नीचे की तरफ एक के बाद एक पकते जाती है अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना सबसे पहले पक जाता है ।




विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा

आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथ यात्रा 5 किलोमीटर में  फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में होती है। रानी गुंडिचा भगवान जगन्नाथ के परम भक्त राजा इंद्रदयुम्न की पत्नी थी इसलिए रानी को भगवान जगन्नाथ की मौसी कहा जाता है। अपनी मौसी के घर भगवान 8 दिन रहते हैं। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष है। देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन है और भाई बलभद्र का रथ ताल ध्वज है। पूरी के गजपति महाराज सोने की झाड़ू बुहारते हैं जिसे छेरा पैररन कहते हैं।


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